डॉ बशीर बद्र
आज हम बात करेंगे Top 10 Bashir Badr Hindi Shayari | उसके पहले एक नजर डालते है बशीर बद्र जी की जीवनी पर | Bashir Badr Hindi Shayari
बशीर बद्र एक ऐसा नाम है जो हर उम्र के लोगो के दिलो में बस्ता है | बशीर बद्र जी को उर्दू का वह शायर माना जाता है | बशीर बद्र जी का जन्म 15 फ़रवरी 1936 को कानपुर में हुआ था | बद्र जी ने कामयाबी की बुलन्दियों को फतेह कर के, बहुत से लोगो के दिलों की धड़कनों में अपनी शायरी को उतारा है।Bashir Badr Hindi Shayari
साहित्य और नाटक आकेदमी में किए गये योगदानो के लिए, डॉ बशीर बद्र जी को 1999 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।Bashir Badr Hindi Shayari
बद्र जी का पूरा नाम सैयद मोहम्मद बशीर है।वैसे तो बशीर बद्र का जन्म कानपुर में हुआ था, परन्तु ये भोपाल से भी ताल्लुख रखते है। आज के समय के बड़े मशहूर शायर और गीतकार, नुसरत बद्र जी इनके पुत्र हैं।Bashir Badr Hindi Shayari
बशीर बद्र जी 56 सालो से हिन्दी और उर्दू में देश के सबसे मशहूर शायरो में से हैं। दुनिया के 2 दर्जन से ज्यादा मुल्कों में बशीर बद्र जी मुशायरे में शिरकत कर चुके हैं।ऐसा कहा जाता है कि बशीर बद्र आम आदमी के शायर हैं।Bashir Badr Hindi Shayari
ज़िंदगी की आम बातों को, बेहद ख़ूबसूरती सुंदरता और सलीके से अपनी ग़ज़लों में कह जाना, ही बशीर बद्र जी की ख़ासियत है। बशीर बद्र जी ने उर्दू ग़ज़ल को एक नया लहजा दिया। यही वजह है कि बशिर बद्र जी श्रोता और पाठकों के दिलों में अपनी ख़ास जगह बना चुके है।Bashir Badr Hindi Shayari Bashir Badr Hindi Shayari
Top 10 Bashir Badr Hindi Shayari
यूँ ही बेसबब न फिरा करो
यूँ ही बे–सबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो |
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके–चुपके पढ़ा करो ||
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से |
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो ||
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जायेगा |
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो ||
मुझे इश्तहार–सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियाँ |
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो ||
कभी हुस्न–ए–पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में |
जो मैं बन–सँवर के कहीं चलूँ, मेरे साथ तुम भी चला करो ||
ये ख़िज़ाँ की ज़र्द–सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है |
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आँसुओं से हरा करो ||
नहीं बे–हिजाब वो चाँद–सा कि नज़र का कोई असर नहीं |
उसे इतनी गर्मी–ए–शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो ||
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आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा |
किश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा ||
बेवक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे |
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा ||
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है |
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा ||
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं |
तुमने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा ||
पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला |
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा ||
क़ातिल के तरफ़दार का कहना है कि उसने |
मक़तूल की गर्दन पे कभी सर नहीं देखा ||
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हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में
हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी |
हिरन की पीठ पर बैठे परिन्दे की शरारत सी ||
वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को |
लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हिक़ारत सी ||
उदासी पतझड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकती |
पहाड़ी पर हज़ारों साल की कोई इमारत सी ||
सजाये बाज़ुओं पर बाज़ वो मैदाँ में तन्हा था |
चमकती थी ये बस्ती धूप में ताराज ओ ग़ारत सी ||
मेरी आँखों, मेरे होंटों से कैसी तमाज़त है |
कबूतर के परों की रेशमी उजली हरारत सी ||
खिला दे फूल मेरे बाग़ में पैग़म्बरों जैसा |
रक़म हो जिस की पेशानी पे इक आयत बशारत सी ||
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कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं
कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं |
शाम के साये बहुत तेज़ क़दम आते हैं ||
दिल वो दरवेश है जो आँख उठाता ही नहीं |
इस के दरवाज़े पे सौ अहले करम आते हैं ||
मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिये |
कभी सोने कभी चाँदी के क़लम आते हैं ||
मैं ने दो चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन |
शहर के तौर तरीक़े मुझे कम आते हैं ||
ख़ूबसूरत सा कोई हादसा आँखों में लिये |
घर की दहलीज़ पे डरते हुए हम आते हैं ||
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उनको आईना बनाया
उसको आईना बनाया, धूप का चेहरा मुझे |
रास्ता फूलों का सबको, आग का दरिया मुझे ||
चाँद चेहरा, जुल्फ दरिया, बात खुशबू, दिल चमन |
इन तुम्हें देकर ख़ुदा ने दे दिया क्या–क्या मुझे ||
जिस तरह वापस कोई ले जाए अपनी छुट्टियाँ |
जाने वाला इस तरह से कर गया तन्हा मुझे ||
तुमने देखा है किसी मीरा को मंदिर में कभी |
एक दिन उसने ख़ुदा से इस तरह माँगा मुझे ||
मेरी मुट्ठी में सुलगती रेत रखकर चल दिया |
कितनी आवाज़ें दिया करता था ये दरिया मुझे ||
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इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा
इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा |
तू भी तलवार सा मैं भी तलवार सा ||
अपना रंगे ग़ज़ल उसके रुखसार सा |
दिल चमकने लगा है रुख ए यार सा ||
अब है टूटा सा दिल खुद से बेज़ार सा |
इस हवेली में लगता था दरबार सा ||
खूबसूरत सी पैरों में ज़ंजीर हो |
घर में बैठा रहूँ मैं गिरफ्तार सा ||
मैं फरिश्तों के सुहबत के लायक नहीं |
हम सफ़र कोई होता गुनहगार सा ||
गुड़िया गुड्डे को बेचा खरीदा गया |
घर सजाया गया रात बाज़ार सा ||
बात क्या है कि मशहूर लोगों के घर |
मौत का सोग होता है त्योहार सा ||
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वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है |
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है ||
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से |
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है ||
महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से |
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है ||
उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं |
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है ||
तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा |
वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है ||
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कभी यूँ भी आ मेरी आँख में
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को ख़बर न हो |
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो ||
वो बड़ा रहीमो–करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे |
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हो ||
मेरे बाज़ुओं में थकी–थकी, अभी महवे– ख़्वाब है चाँदनी |
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो ||
ये ग़ज़ल है जैसे हिरन की आँखों में पिछली रात की चाँदनी |
न बुझे ख़राबे की रौशनी, कभी बे–चिराग़ ये घर न हो ||
कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फूल को चूम कर |
यूँ ही साथ–साथ चले सदा, कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो ||
मेरे पास मेरे हबीब आ, ज़रा और दिल के करीब आ |
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं, कि बिछड़ने का कभी डर न हो ||
कहाँ आँसुओं की ये सौगात होगी
कहाँ आँसुओं की ये सौगात होगी |
नए लोग होंगे नयी बात होगी ||
मैं हर हाल में मुस्कराता रहूँगा |
तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी ||
चराग़ों को आँखों में महफूज़ रखना |
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी ||
न तुम होश में हो न हम होश में है |
चलो मयकदे में वहीं बात होगी ||
जहाँ वादियों में नए फूल आएँ |
हमारी तुम्हारी मुलाक़ात होगी ||
सदाओं को अल्फाज़ मिलने न पायें |
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी ||
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी |
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी ||
मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे
मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे |
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे ||
कोई फूल सा हाथ काँधे पे था |
मेरे पाँव शोलों पे चलते रहे ||
मेरे रास्ते में उजाला रहा |
दिये उस की आँखों के जलते रहे ||
वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया |
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे ||
मुहब्बत अदावत वफ़ा बेरुख़ी |
किराये के घर थे बदलते रहे ||
सुना है उन्हें भी हवा लग गई |
हवाओं के जो रुख़ बदलते रहे ||
लिपट के चराग़ों से वो सो गये |
जो फूलों पे करवट बदलते रहे ||