Jagannath Puri Rath Yatra 2021
उड़ीसा के पूरी जगह पर स्थित है। जगन्नाथ जी का मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। श्री जगन्नाथ जी का मंदिर हिंदुओं के तीर्थ में चारों धामों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि अगर मरने से पहले जगन्नाथ मंदिर सहित चारों धामों की यात्रा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।Puri Rath Yatra
उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु के अवतार किशोर जी का मंदिर है। जो बहुत विशाल और कई वर्ष पुराना है. जगन्नाथ मंदिर में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं। पुरी का आकर्षण का प्रमुख केंद्र यहां की रथयात्रा है। पूरी की यह रथ यात्रा किसी बड़े त्यौहार से कम नहीं है या उड़ीसा के पुरी के अलावा पूरे विश्व में कई हिस्सों में निकाली जाती है।
जगन्नाथ Puri Rath Yatra कब निकाली जाती है
पुरी जगन्नाथ जी की रथ यात्रा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के द्वितीया को निकाली जाती है। इस वर्ष सन 2021 में यह रथ यात्रा 12 जुलाई सन 2021 को निकाली जाएगी। इस दिन रविवार का दिन है। रथ यात्रा का त्यौहार 10 दिन का होता है जो शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन समाप्त होता है।Puri Rath Yatra Puri Rath Yatra Puri Rath Yatra
पूरी रथ यात्रा में पूरे विश्व से लाखों की संख्या में भक्तों पहुंचते हैं और इस त्यौहार का हिस्सा बनते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण और भाई बलराम तथा बहन सुभद्रा को रथों में बैठा कर गुंडिचा मंदिर में ले जाया जाता है। इन तीनों रथों को भव्य आलीशान तरीके से सजाया जाता है। इसकी तैयारी कई महीने पहले से शुरू हो जाती है।
जगन्नाथ रथ यात्रा की कहानी
पुरी जगन्नाथ के रथ यात्रा से जुड़े बहुत सी कहानी कहानी और कथाएं हैं जैसे
- कुछ लोगों का मानना है किस दिन सुभद्रा जोकि कृष्ण की बहन है अपने मायके आती हैं। और माई के आने के बाद अपने भाइयों से नगर भ्रमण की इच्छा रखती हैं। तत्पश्चात कृष्ण और बलराम सुभद्रा के साथ रस में सवार होकर पूरे नगर का भ्रमण करते हैं। इसी के साथ रथ यात्रा का त्यौहार शुरू हुआ। Puri Rath Yatra
- गुंदीचा मंदिर में स्थिति देवी को कृष्ण भगवान की मौसी कहा जाता है। जो तीनों लोगों कृष्ण बलराम तथा सुभद्रा को अपने घर पर आने का निमंत्रण देते हैं। इसीलिए कृष्ण बलराम अपनी बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर 10 दिन के लिए जाते हैं।
- ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण के मामा कंस उन्हें अपने घर में थोड़ा बुलाते हैं। इसके लिए कंस गोकुल में सारथी के साथ रथ भिजवाते है। जिसमें कृष्ण अपने भाई बहन के साथ उस रथ के द्वारा मथुरा जाते हैं। जिसके बाद से पुरी जगन्नाथ की रथ यात्रा का प्रारंभ हुआ। Puri Rath Yatra
- कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जब श्री कृष्ण ने कंस का वध किया तो उस दिन अपने भाई बलराम के साथ अपनी प्रजा को दर्शन देने के लिए मथुरा में रथ यात्रा निकालते हैं। Puri Rath Yatra
यह भी कहा जाता है की कृष्ण की रानियां रोहिणी माता से कृष्ण की रासलीला सुनाने को कहती है। ऐसे में माता रोशनी को लगता है सुभद्रा को कृष्ण की गोपियों के संग रचाई रासलीला के बारे में नहीं सुनना चाहिए। इसलिए माता रोहणी सुभद्रा को कृष्ण और बलराम के साथ रथ यात्रा पर भेज देती हैं।Puri Rath Yatra
उसी समय नारद जी प्रकट होते हैं और कृष्ण बलराम तथा सुभद्रा तीनों को एक साथ देख कर प्रसन्न हो जाते हैं। और प्रार्थना करते हैं कि तीनों इसी तरह हर साल दर्शन देते रहें। जिसके बाद नारद मुनि की या प्रार्थना सुन ली जाती है। और यह यात्रा तब से आज तक प्रत्येक वर्ष निकाली जाते हैं। Puri Rath Yatra
पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास
श्री कृष्ण की मौत के पश्चात उनके शरीर को द्वारिका लाया जाता है। उसके बाद बलराम अपने भाई की मृत से अत्यधिक दुखी हो जाते हैं। तथा इसके बाद बलराम कृष्ण के शरीर को लेकर समुद्र में कूद जाते हैं। कृष्ण और बलराम के समुद्र में कूदने से सुभद्रा भी समुद्र में कूद जाते हैं।Puri Rath Yatra
उसी समय भारत के पूर्व क्षेत्र में स्थित पुरी के राजा इंद्रद्विमुना को सपना आता है कि भगवान का शरीर समुद्र में तैर रहा है। अतः उन्हें भगवान कृष्ण की विशाल प्रतिमा बनवानी चाहिए और मंदिर का निर्माण करना चाहिए। इसी के साथ देवदूत उन्हें सपने में बोलते हैं की कृष्ण के साथ बलराम और सुभद्रा की भी मूर्ति बनाई जाए और श्री कृष्ण की अस्थियों को उनकी मूर्ति में पीछे छेद करके रख दिया जाए।
अगले दिन उठते हैं राजा समुद्र में भगवान कृष्ण की अस्थियों को लेने के निकलता है। और उन्हें अस्थियां मिल जाती है। लेकिन उनके मन में यह सवाल था की भगवान की प्रतिमा का निर्माण कौन करेगा। उसी समय ऐसा माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा बढ़ई के रूप में प्रकट हुए और मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू किए। Puri Rath Yatra Puri Rath Yatra
मूर्ति निर्माण कार्य शुरू करने के पहले भगवान विश्वकर्मा सबसे कहते हैं की उन्हें काम करते वक्त परेशान बिल्कुल ना किया जाए अन्यथा वह काम को बीच में छोड़कर चले जाएंगे। कुछ महीनों बीत जाने के बाद मूर्ति नहीं बन पाती है। तब उतावलापन में आकर पूरी के राजा बढ़ई के कमरे का दरवाजा खोल देते हैं।Puri Rath Yatra Puri Rath Yatra
उसी समय भगवान विश्वकर्मा अंतर्ध्यान हो जाते हैं। उस समय तक कृष्ण की मूर्ति पूरी नहीं बन पाई होती है। लेकिन पूरी के राजा उस मूर्ति को वैसे ही स्थापित कर देते हैं। और उस मूर्ति के पीछे छेद करके भगवान कृष्ण की अस्थियो को रख देते हैं तथा उस मूर्ति को मंदिर में विराजमान कर देते हैं। Puri Rath Yatra
पुरी रथ यात्रा में तीन विशाल राथो में भगवान कृष्ण सुभद्रा और बलराम की मूर्तियों के साथ निकाला जाता है। इनकी प्रतिमा को प्रत्येक 12 साल के बाद बदला जाता है। और जो नई प्रतिमा स्थापित की जाती है वह भी पूरी नहीं बनी होती है। पूरे विश्व का यह इकलौता मंदिर है जहां कृष्ण बलराम और सुभद्रा की एक साथ मूर्तियां है। Puri Rath Yatra
पुरी जगन्नाथ रथ का विवरण
भगवान् | रथ का नाम | रथ में लगे पहिये | रथ की उचाई | लकड़ियों की संख्या |
श्री कृष्ण | नंदीघोष/गरुड़ध्वज | 16 | 13.5 मीटर | 832 |
श्री बलराम | तलध्वज/लंगलाध्वज | 14 | 13.2 मीटर | 763 |
शुभद्रा | देवदलन/पद्मध्वज | 12 | 12.9 मीटर | 593 |
जगन्नाथ पुरी के रथ का निर्माण अक्षय तृतीया के दिन से ही शुरू हो जाता है। इन रथों को प्रत्येक वर्ष नए तरीके से बनाया जाता है। जिसमें कई लोग काम करते हैं और रथ बना करके उसे सजाते हैं। Puri Rath Yatra
रथ यात्रा में मुख्य रूप से 3 रथ होता है
श्री कृष्ण का रथ
भगवान श्री कृष्ण के रथ की ऊंचाई लगभग 45 फिट होती है। इस रथ में 16 पहिए लगे होते हैं। इन पहियों का व्यास 7 फिट होता है। कृष्ण के रथ को लाल व पीले कपड़े से सजाया जाता है। जिसकी रक्षा गरुण करता है। इस रथ को चलाने वाले को दारूका कहते हैं। रथ में लगे झंडे को त्रैलोक्यमोहिनी कहते हैं।Puri Rath Yatra
इस रथ में चार घोड़े लगे होते हैं। इस रथ में गोवर्धन कृष्णा नरसिंह राम नारायण हनुमान व रुद्रदेव विराजमान रहते हैं। जिस रस्सी से इस रस को खींचा जाता है उसे शंखचूड़ा नागिनी कहते हैं। Puri Rath Yatra
बलराम का रथ
भगवान श्री बलराम के रथ की ऊंचाई लगभग 43 फीट होती है। इस रथ में 14 छक्के लगे होते हैं। इस बात को लाल नीले हरे रंग के कपड़े से सजाया जाता है। इस रथ की रक्षा वासुदेव जी करते हैं। इस रथ के सारथी का नाम मिताली होता है। इस रस में गणेश कार्तिक मृत्युंजय नाताअंबारा मुक्तेश्वर हटायुद्ध शेष देव विराजमान होते हैं। भगवान बलराम के रथ में जो झंडा लगा होता है उसे उनानी कहते हैं।
सुभद्रा का रथ
सुभद्रा के रथ की ऊंचाई लगभग 42 फिट होती है। इस रथ को लाल तथा काले रंग के कपड़े से सजाया जाता है। इस रथ में 12 पहिये लगे है। सुभद्रा के रथ की रक्षा जय दुर्गा करती हैं। तथा इन के सारथी का नाम अर्जुन होता है।
इसमें लगे झंडे का नाम नंदविक है। सुभद्रा के रथ में चंडी चामुंडा उग्रतारा नवदुर्गा शैलदुर्गा बाराही मंगला विमला श्यामकली विराजमान होते हैं। इस रथ को जिस रास्सी से खींचा जाता है उसे स्वर्णाचूड़ा नागिनी कहते हैं। Puri Rath Yatra
इन तीनों रथों को हजारों लोग मिलकर खींचते हैं। ऐसा माना जाता है इस रथ को खींचने से उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इसलिए सभी लोग एक बार इस रथ को खींचना चाहते हैं। रथ यात्रा के समय ही जगन्नाथ जी को नजदीक से देखा जा सकता है।
रथ यात्रा का महत्व
पुरी जगन्नाथ के रथ यात्रा के शुरू होने के पश्चात या रथ यात्रा गुंडिचा मंदिर पहुंचती है। जिसके अगले दिन तीनों प्रतिमाओं को मंदिर में स्थापित किया जाता है। फिर एकादशी तक तीनों प्रतिमाओं को यही रखा जाता है। इस दौरान उड़ीसा के पूरे शहर में मेला रहता है और मेले में तरह तरह के आयोजन होते हैं। जिसमें महाप्रसाद का वितरण होता है।Puri Rath Yatra
एकादशी के दिन जब कृष्ण बलराम तथा सुभद्रा के प्रतिमाओं को लाया जाता है। उस दिन ठीक पहले दिन की तरह ही भीड़ उमड़ती है। उस दिन को बहुरा कहा जाता है इसके बाद तीनों प्रतिमाओं को मंदिर के गर्भ में अपने स्थान पर स्थापित कर दिया जाता है। और साल में एक बार रथ यात्रा के समय ही इन्हें निकाला जाता है। Puri Rath Yatra
जगन्नाथ की रथ यात्रा का आयोजन भारत देश के साथ साथ अन्य देशों में भी होता है। भारत देश में कई मंदिरों से भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा को शहर भ्रमण के लिए निकाला जाता है। भारत के बाहर इस्कॉन मंदिर के द्वारा श्री कृष्ण की रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है जो 100 से भी ज्यादा विदेशी शहरों में होता है। Puri Rath Yatra
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FAQ
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रथ यात्रा कब निकाली जाती है?
पुरी जगन्नाथ जी की रथ यात्रा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के द्वितीया को निकाली जाती है।
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जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है?
कुछ लोगों का मानना है किस दिन सुभद्रा जोकि कृष्ण की बहन है अपने मायके आती हैं और माई के आने के बाद अपने भाइयों से नगर भ्रमण की इच्छा रखती हैं तत्पश्चात कृष्ण और बलराम सुभद्रा के साथ रस में सवार होकर पूरे नगर का भ्रमण करते हैं इसी के साथ रथ यात्रा का त्यौहार शुरू हुआ।
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2021 में जगन्नाथ यात्रा कब है?
इस साल 12 जुलाई से रथ यात्रा शुरू हो जाएगी और देवशयनी एकादशी यानी 21 जुलाई को समाप्त होगी।
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रथ यात्रा उत्सव कहाँ मनाया जाता है
रथ यात्रा उत्सव उड़ीसा के पूरी में मनाया जाता है इसके साथ साथ विश्व भर के कई शहरों में मनाया जाता है।
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जगन्नाथ जी की मौसी का नाम क्या है?
गुंडिचा मंदिर को भगवन जगन्नाथ जी के मौसी का घर कहा जाता है।
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यात्रा कितने तारीख का है?
यात्रा 12 जुलाई से प्रारम्भ है।
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जगन्नाथ जी का मेला कब है?
जगन्नाथ जी का मेला की शुरुआत 12 जुलाई से हो जाएगी।
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जगन्नाथ पुरी कब जाये?
जगन्नाथ पुरी घूमने के लिए मार्च से लेकर जुलाई महीने तक का समय सबसे अच्छा है
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जगन्नाथ मंदिर में किसकी मूर्ति है?
पुरी जगन्नाथ मंदिर में भगवान् श्री कृष्ण ,बलराम और सुभद्रा की मूर्तिया है।
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जगन्नाथ मंदिर की ऊंचाई कितनी है?
जगन्नाथ मंदिर की ऊंचाई 213 फिट है।
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जगन्नाथ भगवान के हाथ क्यों नहीं है?
जब भगवन विश्वकर्मा भगवन की मुर्तिया बना रहे थे तो पुरी के राजा ने उत्सुकतावश उनके कमरे का दरवाजा खोल दिया और विश्वकर्मा अंतर्ध्यान हो गए और उस समय तक भगवन की पूरी मूर्ती नहीं बानी थी। इसीलिए तीनो मूर्तियों के हाथ और पैर के पंजे नहीं है।
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जगन्नाथ पुरी कौन सी दिशा में है?
जगन्नाथ पुरी भारत में पूर्व दिशा में है।
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पुरी के समुद्र का क्या नाम है?
चंद्रभागा
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भगवान जगन्नाथ कौन थे?
भगवान् जगन्नाथ, भगवान् विष्णु के कला अवतार श्रीकृष्ण जी है। पूरी में कृष्ण बहन सुभद्रा तीनो की मूर्तिया है , रथ यात्रा जिनको निकल कर नगर भ्रमण है।
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पूरी क्यों प्रसिद्ध है?
हिन्दुओ के प्रमुख चारो धाम में से एक धाम है जगन्नाथ पूरी धाम , इस धाम में भगवान् श्री कृष्ण , बलराम और उनकी बहन शुभद्रा की मूर्तिया है। प्रत्येक वर्ष यहाँ रथ यात्रा निकली जाती है। जिसे देखने के लिए लाखो हिन्दू आते है। इस पर्व को पूरी रथ यात्रा कहा जाता है।